प्रशान्त पाण्डेय सिंधु स्वाभिमान समाचारपत्र सूरजपुर के प्रतापपुर में एक नाबालिक बालक अपनी बहन के जन्म दिन से लापता था और अंततः उस मासूम के परिजनों को आज इतने दिनो बाद बालक का कंकाल बरामद हुआ है। इतने दिनों से पुलिस सरकारी गाड़ियों में फ्री की सरकारी डीजल भरवा कर सूरजपुर पुलिस घूम रही थी लेकिन कुछ खाक तक नहीं छान पाई थी लेकिन जब पीड़ित परिवार उग्र हुआ और नगरवासियों ने धरना दिया तो पुलिस थोड़े सकते में आई और आज बच्चे को बचा तो नही पाई लेकिन अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए बच्चे का कंकाल बरामद कर लाई है। इन सब के बीच एक सवाल उठता है की जब पुलिस वालों के साथ कोई घटना होती है तो पुलिस वाले उसे कहीं से भी ढूंढ लेते हैं लेकिन जिस बात की सैलरी पुलिस वालों को मिलती है उसी में पुलिस अधिकतर असफल रहती है।पुलिस की शैली पर आरोप कोई पहली बार नही लगी है बल्कि पुलिस की छवि अब दागदार होने के लिए शायद अब बची ही नही है क्योंकि ये वही सूरजपुर जिला है जहां पुलिस वाले को कभी ये महिलाओं को मारते पीटते नजर आते हैं तो कहीं खुद मार खाते दोनो वीडियो हमारे यूट्यूब पर उपलब्ध है।
कभी खुद मारती तो कभी खुद मार खाती सूरजपुर पुलिस लेकिन कार्यवाही के नाम पर सिर्फ मुंह बंदी
कई बार देखा गया है की सूरजपुर पुलिस महिलाओं से मारपीट करती नजर आती है लेकिन उसपर कोई कार्यवाही नहीं होती है और ना तब जब पुलिस वाले को ही एक नेता भरे दल बल के सामने कूट देता है तब पुलिस उसका कुछ भी नही कर पति है। केवल एसी वाले कमरे में अपना बटन तोड़ता पेट लेकर घूमने से या लोगों को अपनी वर्दी दिखाने से कुछ नही होता है ये बात पुलिस वालों को शायद ही कभी समझ आएगी। क्या पुलिस केवल कमजोर लोगों पर जोर आजमाइश मात्र के लिए है..?
क्या पुलिस वालों की लापरवाही से छीन गया एक मां का लाल
कुछ जानकारों का कहना है की अगर पुलिस सही समय पर मामले की गंभीरता को समझते हुए सही कदम उठाई होती तो आज रिशु कश्यप जिंदा होता लेकिन उन लोगों को क्या कह सकते हैं जो कई बार मर्डर केस तक में रिश्वत लेते नजर आ जाते हैं हालांकि आरोप लगने के बाद उन्हें पुलिस निराधार बताने में जितने जल्दबाजी करती हैं उतनी जल्दबाजी अगर रिशु कश्यप के मामले में की होती तो आज शायद उसके माता पिता ये दिन नही देख रहे होते। रिशु के माता पिता से कोई जाकर पूछे की उन पर क्या बीत रही है लेकिन ये तो वही बता सकता है जिसने यह दर्द झेला हो। उस मां पर क्या बीती होगी जिसका कलेजे का टुकड़ा 29 दिनो से गायब था,कैसे निवाला उस मां के गले के नीचे उतरा होगा ये तो वही बता सकती है जिसने अपने जिगर के टुकड़े का इतने दिनो सही सलामत होने की कामना की और उसे इस दर्द से गुजरना पड़ रहा है,कोई उस पिता से पूछे जिसका जीने का सहारा छीन गया।खैर इन सब बातों से पुलिसवालों को कभी कोई फर्क नही पड़ेगा।
मान मनोवल वाले समाचार से ही खुश होते हैं साहब/हुजूर..?
पुलिस की कमी गिनने के चलते कुछ चुनिंदा पत्रकार पुलिस के निशाने में भी आते हैं या तो खबर लिखने के बाद उन्हें पुलिस अपनी दबंगई का नमूना पेश करते हुए उठा लेती है या फिर उनके खिलाफ जाल बिछा कर रखती है,और वक्त आने पर उनसे अपना बदला निकलने का भरसक प्रयास करती है।
सरगुजा से लेकर बस्तर तक सभी जगह पुलिस की छवि धूमिल..?
सरगुजा से लेकर बस्तर तक पुलिस की छवि पर हमेशा से प्रश्न चिन्ह लगते आए हैं आखिर ऐसा क्यों है कहीं पुलिस की लापरवाही तो कहीं ग्रामीणों को माओवादियों की वर्दी पहना कर फर्जी एनकाउंटर करना आखिर स्टार बढ़ाने के लिए क्या ये सही में किया जा रहा है,या यह अफवाह मात्र है लेकिन सभी जगहों पर पुलिस की कार्यशैली में प्रश्नचिन्ह क्यों….? क्या सच में पुलिस लापरवाही से काम कर रही है..??