युक्तियुक्तकरण पदस्थापना में सामंजस्य का खेल,डीईओ फेल या अंदर ही अंदर चल रहा सेटलमेंट का खेल..? भारती वर्मा के व्यवहार से शिक्षा विभाग के कर्मचारी अपमानित:–सूत्र

सिंधु स्वाभिमान समाचारपत्र सूरजपुर शिक्षा व्यवस्था को पारदर्शी और न्यायसंगत बनाने के लिए शासन की एक बहुत ही महत्वाकांक्षी योजना युक्तियुक्तकरण आई है जिसके तहत छत्तीसगढ़ में शिक्षा युक्तियुक्तकरण योजना एक महत्वपूर्ण पहल है जिसका मुख्य उद्देश्य राज्य में स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना और शैक्षिक संसाधनों का बेहतर ढंग से उपयोग करना है। यह योजना मुख्य रूप से निम्नलिखित समस्याओं को दूर करने के लिए लागू की गई है:
शिक्षक विहीन और एकल शिक्षक वाले स्कूल: छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में ऐसे स्कूल थे जहां या तो कोई शिक्षक नहीं था (शिक्षक विहीन स्कूल) या केवल एक ही शिक्षक था जो सभी कक्षाओं को पढ़ाता था (एकल शिक्षक वाले स्कूल)। इससे छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पा रही थी।
शिक्षकों का असंतुलित वितरण: कुछ स्कूलों में आवश्यकता से अधिक शिक्षक थे, जबकि अन्य स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी थी।
कम छात्र संख्या वाले स्कूल: ऐसे स्कूल जहां छात्रों की संख्या बहुत कम थी, उन्हें चलाना आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं था और संसाधनों का अनावश्यक उपयोग हो रहा था।
युक्तियुक्तकरण योजना में क्या होता है?
इस योजना के तहत मुख्य रूप से निम्नलिखित कदम उठाए जा रहे हैं:
शिक्षकों का पुनर्वितरण (Teacher Rationalisation): जिन स्कूलों में शिक्षकों की संख्या अधिक है, वहां से शिक्षकों को उन स्कूलों में स्थानांतरित किया जा रहा है जहां शिक्षकों की कमी है। इसका उद्देश्य प्रत्येक स्कूल में छात्र-शिक्षक अनुपात को संतुलित करना और यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी स्कूल शिक्षक विहीन न रहे।
स्कूलों का समायोजन/विलय (School Merger/Consolidation): कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को आसपास के बड़े स्कूलों में विलय किया जा रहा है। इसका मतलब यह नहीं है कि स्कूल बंद हो रहे हैं, बल्कि छात्रों को बेहतर बुनियादी ढांचे और अधिक शिक्षकों वाले स्कूलों में स्थानांतरित किया जा रहा है।
उदाहरण के लिए, ग्रामीण क्षेत्रों में 1 किलोमीटर के दायरे में आने वाले कम छात्र संख्या वाले स्कूलों और शहरी क्षेत्रों में 500 मीटर के दायरे में आने वाले कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को मर्ज किया जा रहा है।

लेकिन युक्तियुक्तिकरण अभियान को सूरजपुर में मज़ाक बना दिया कर रख दिया गया है। शिक्षा गुणवत्ता में सुधार पारदर्शिता के लिए शासन द्वारा लाए गए इस योजना में कई मनमाने काम किए जा रहे हैं जो विधि विरुद्ध हैं जिन्हें मनमाने ढंग से संचालित करने का प्रयास किया जा रहा है।सूरजपुर जिले की जिला शिक्षा अधिकारी जिनके उपर जिले के शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के जिम्मेदारी है वो अकसर विवादों में घिरी नजर आती हैं या फिर उन्हें अक्सर सुर्खियों में बने रहने का शौक है।सूरजपुर जिले की जिला शिक्षा अधिकारी  भारती वर्मा एक बार फिर सुर्खियों में हैं। पदस्थापना को लेकर चुपचाप खेले जा रहे संशोधन के खेल ने पूरे जिले के शिक्षकों में भारी आक्रोश फैला दिया है। हाल ही में काउंसलिंग प्रक्रिया के तहत पूनम सिंह, सहायक शिक्षक को प्राथमिक शाला चिटकाहीपारा रामानुजनगर तथा विद्यावती सिंह को प्राथमिक शाला पंडोपारा रामानुजनगर पदस्थ किया गया था। दोनों ने नियमित रूप से अपना कार्यभार भी ग्रहण कर लिया था। लेकिन अब आपसी सहमति की आड़ में इनकी पदस्थापना आपस में चुपचाप संशोधित कर दी गई, वह भी बिना किसी आधिकारिक घोषणा के।

जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा जारी आदेश

प्रश्न यह उठता है कि क्या आपसी सहमति केवल चुनिंदा शिक्षकों के लिए आरक्षित है? जिले की सैकड़ों महिला शिक्षकाएँ, जो अपने घर से 50 से 150 किलोमीटर दूर पदस्थ कर दी गई हैं, आज भी संशोधन की आस में टकटकी लगाए बैठी हैं, लेकिन उन्हें यह सुविधा क्यों नहीं मिल रही ? जिले के शिक्षकों ने इस फैसले की कड़ी आलोचना करते हुए कहा है कि यदि कार्यालय में पदस्थापना संशोधन का ऐसा ही खेल चलता रहा, तो जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय को रेट लिस्ट भी कार्यालय के बाहर चस्पा कर देनी चाहिए, ताकि सभी शिक्षक बिना संकोच और भय के इस सुविधा का लाभ उठा सकें। शिक्षकों का कहना है कि पदस्थापना संशोधन के आदेशों को छिपाकर जारी किया जा रहा है, जिससे पूरे जिले में पारदर्शिता और न्याय की भावना को गहरा आघात पहुंच रहा है।ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सूरजपुर में शिक्षक पदस्थापना व्यवस्था की बोली लग रही है? क्या जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय संशोधन बाजार में तब्दील हो चुका है या फिर यह सिर्फ चंद चुनिंदा शिक्षकों के लिए ही विशेष दरवाजा खोलता है? प्रदेश स्तर पर इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच की माँग जोर पकड़ रही है। हमसे बातचीत के दौरान कुछ शिक्षकों ने नाम ना उजागर करने के शर्त पर बताया कि मैडम अपने काम के लिए नहीं बल्कि अपने दुर्व्यवहार के लिए जानी जाती हैं। और कई ऐसे वाक्या समाचारपत्रों में भी उनके अड़ियल रवैया को लेकर प्रकाशित भी हो चुकी हैं जिसमें उनके द्वारा जन प्रतिनिधि,अपने कर्मचारियों और आगंतुकों से उनका व्यवहार सम्मानजनक नहीं रहता है ऐसे में सवाल उठता है कि जिला शिक्षा अधिकारी भारती वर्मा को किस बात का घमंड है या उनका यही तरीका है अपने कार्यालय में आय लोगों से बात करने का हमे यह भी जानकारी मिली कि मैडम लोगों के फोन भी नहीं उठती हैं जिससे कोई उन्हें किसी प्रकार की परेशानी या असुविधा से या जानकारी से अवगत करा सके,भारती वर्मा के बारे में कुछ जानकर बताते हैं कि महोदया का विवादों से पुराना नाता रहा है उनका व्यवहार पूर्व में भी ऐसा ही था जिसके चलते अधिकतर लोग उनसे नाखुश  नजर आते हैं। एक शिक्षक का व्यवहार मधुर और कार्य नियमानुसार होना चाहिए ना कि विवादित और पक्षपातपूर्ण क्योंकि जैसा शिक्षक होता हैं बच्चे भी वही सीखते हैं,और एक डीईओ को तो पूरे जिले की कमान संभाली होती है तो उन्हें और भी विवादों से दूरी बना कर रखनी चाहिए।

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