
संपादक के कुशल मार्गदर्शन के बाद वकील साहब ने सही एड्रेस पर भेजा नोटिस
सिंधु स्वाभिमान समाचारपत्र सूरजपुर तहसीलदार लटोरी के द्वारा जब अपनी ही चोरी पकड़ी गई तो डर के चलते उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था और अपने कुछ सलाहकारों से विशेष सलाह लेने के बाद जब उन्हें कोई और रास्ता नजर नहीं आ रहा था तब उनके द्वारा खबर प्रशासन के कई महीनो बाद संपादक दंपति को लीगल नोटिस भेज कर 20 लख रुपए की मांग की गई है। वकील महोदय के द्वारा हिंद स्वराष्ट्र समाचार पत्र के संपादक महोदया को नोटिस भेजा गया था जिसमें सिंधु स्वाभिमान का भी जिक्र किया गया था जिस पर सिंधु स्वाभिमान के संपादक प्रशान्त कुमार पाण्डेय के द्वारा तहसीलदार के वकील को कुशल मार्गदर्शन करके बताया गया कि आपने एक नोटिस तो सफलतापूर्वक भेज दिया है परंतु आपके द्वारा हमारे नाम का नोटिस सूरजपुर में पता ना मिल के कारण घूम रहा है, साथ ही तहसीलदार के वकील को सिंधु स्वाभिमान के संपादक द्वारा कुशल मार्गदर्शन किया गया ताकि वह अपना काम पूरा कर सकें।
नए नवेले वकील से किसी महापुरुष ने लगवाया था आरटीआई
कुछ दिन पूर्व ही एक नएनवेले वकील जो अभी अपने सीनियर के अधीनस्थ वकालत की दांव पेंच सीख रहा है उसके द्वारा सूचना के अधिकार के तहत हमसे कुछ जानकारी मांगी गई थी। अब इस वकील को कौन सिखाएं कि महज काला कोट पहन लेने से दिमाग में कानून की किताब नहीं छपती बल्कि उसके लिए परिश्रम करना पड़ता है। किसी चाय के दुकान में बैठने से अनुभव नहीं मिलता उसके लिए सिखाना पड़ता है लेकिन वकील बाबू भूल गए थे कि गैर सरकारी संस्था जिन्हें शासन से अनुदान प्राप्त नहीं होता है वह सभी आरटीआई के दायरे से बाहर होते हैं।शायद यह टॉपिक उनके कॉलेज से बंक मारने के दौरान छूट गया होगा..?? या फिर चाय पीने के शौकीन नए नवेले वकील बाबू को इस बात का ज्ञान ही नहीं था की हम आरटीआई के दायरे में आते हैं या नहीं।
अपनी गलती छुपाने तहसीलदार ने भेजा है नोटिस सबूत के साथ उच्च अधिकारियों को शिकायत कर हुई है कार्रवाई की मांग
जब तहसीलदार ने वीडियो में स्वयं स्वीकार था की गलतीवस, त्रुटिवस उनसे चौहद्दी के दस्तावेज पर हस्ताक्षर हुए हैं और बाद में उन्होंने अपनी गलती को सुधारते हुए भुइंया ऐप में नामांतरण की आवश्यकता नहीं है किया गया है तो फिर हम गलत कहां हुए और जब इतने सारे साक्ष्य बता रहे हैं कि सिर्फ दो दस्तावेज ही नहीं कई ऐसे दस्तावेज है जिनमें तहसीलदार के द्वारा बिना कलेक्टर के अनुमति और बिना पटवारी प्रतिवेदन आए उससे पूर्व ही स्वयं के हस्ताक्षर कर चौहद्दी का निर्माण किया गया है इसके बाद इन भूमियों के रजिस्ट्री और नामांतरण की प्रक्रिया हुई है। कई जमीन तो ऐसे भी हैं जिनकी रजिस्ट्री हो चुकी थी लेकिन नामांतरण का काम रोक कर रखा गया था,लेकिन बाबजूद इसके कुछ इसी तरह की त्रुटि वाले जमीन रजिस्ट्री की नामांतरण की प्रक्रिया को पूरा कर दिया गया है क्योंकि हमारे द्वारा लगातार इस संबंध में साक्ष के साथ खबर का प्रकाशन किया जा रहा था जिससे संभवत भयभीत होकर सबूत मिटाने के उद्देश्य से तहसीलदार के द्वारा यह सब किया गया ऐसा प्रतीत होता है इसके संबंध में राजस्व की उच्च अधिकारियों को लिखित शिकायत दी गई है।
जब लूट रही थी इज्जत तब नहीं आया ख्याल अब जब मच रहा है बवाल तो पूछ रहे हैं सवाल..?
खबरों का प्रकाशन तहसीलदार के विरुद्ध काफी महीने पूर्व से ही किया जा रहा था लेकिन उससे पूर्व तहसीलदार ने किसी प्रकार का नोटिस नहीं भेजा था बल्कि फोन करके दूसरों से धमकी दिलवा कर और हमें जान से मारने के लिए सुपारी देने वालों के साथ मिलकर अपना काम चलाते रहे परंतु जब तहसीलदार के विरुद्ध खबरों का प्रकाशन बंद नहीं हुआ तो फिर उनके कुछ सलाहकारों के सुझाव से अंतिम प्रयास करते हुए उन्होंने हमें डराने का प्रयास करने के लिए नोटिस भेजा है। तहसीलदार के द्वारा जब अपने बयान में अपनी गलती स्वीकारी गई थी तो फिर नोटिस के द्वारा अपने आप को बेदाग और किसी के दबाव में आए बिना काम करने वाला व्यक्ति कैसे बता सकते हैं साधु राम रजक के प्रकरण में भी माननीय हाईकोर्ट के निर्देश को दरकिनार करते हुए उसकी अहेलना इन्हीं के द्वारा की गई है। खैर उनके मुताबिक जब इतने महीनों से उनकी मानहानि हो रही थी तब इन्हें इस बात का ख्याल नहीं आया अब जब बवाल मचने लगा है तब हमें डराने के लिए नोटिस भेज रहे हैं। इससे पूर्व इनके द्वारा फोन करके हम्बल रिक्वेस्ट करने का भी मामला सामने आया है और कई बार इनके द्वारा मीटिंग अरेंज करवाया गया था और हमसे हाथ जोड़कर न्यूज़ ना लगाने की बात उनके द्वारा स्वयं कही गई थी।
क्या नोटिस भेज कर 20 लाख मांगने वाले ने कभी देखा है अपने आंखों से इक्कठे 20 लाख रुपए…?
जब खुद को इतना ईमानदार बता रहे हैं लेकिन एक सच को उजागर करने वाले संपादक दंपति से 20 लाख की मांग कर रहे हैं। जब अपनी गलती खुद कैमरे के सामने स्वीकार कि और उसे हमने अपने न्यूज में प्रकाशित किया तो इसमें सुरेंद्र पैकरा के मान सम्मान की हानि कहां हुई बल्कि इस कुकृत्य के लिए तहसीलदार के उपर कार्यवाही होनी चाहिए थी जो अब तक नहीं हुई है। इस मामले में बड़े अधिकारियों की चुप्पी एक संरक्षण की ओर इशारा कर रही है। नोटिस में खुद को ईमानदार बताने वाले तहसीलदार साहब को जितना वेतन मिलता है उतने में 20 लाख इक्कठा करने में तो उन्हें खुद सालों लग जाएंगे तो इस हिसाब से खुद उन्होंने 20 लाख इक्कठे कभी शायद ही देखा होगा,जितना खुद कभी देखा नहीं उतना कैसे किसे से मांग सकते हैं यह भी एक प्रश्नचिन्ह है।राजस्व के बारे में हम नहीं कह रहे हैं लेकिन जिसे संदेह हो किसी आम व्यक्ति से पूछने पर वह यह जरूर बताएगा कि बिना पैसा लिए राजस्व का चपरासी तक एक काम नहीं करता है।
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