Sun. Jun 15th, 2025

सिंधु स्वाभिमान समाचारपत्र अम्बिकापुर के लाइवलीहुड कॉलेज में युवाओं को रोजगार और स्वरोजगार के नए नए अवसर उपलब्ध कराने के लिए कई तरह के ट्रेनिंग आयोजित किए जाते रहे हैं और इस योजना को संचालित करने के लिए शासन द्वारा काफी फंड भी प्रदान किया जाता रहा है,लेकिन यह योजना जिससे लोगों को अपने आर्थिक स्तर को सुधारने अवसर मिलता केवल अधिकारियों और कर्मचारियों के जेब भरने का साधन मात्र बनके रह गया। कई ऐसे उदाहरण हैं जहां लोगों को ट्रेनिंग के नाम पर बेवकूफ बनाया गया और उनके साथ छल किया गया। आपको बता दें कि कई जगह यह ट्रेनिंग केवल कागजों तक ही सीमित रह गई और इसके धरातल से कोई संबंध तक नहीं रहा। ट्रेनर संस्था द्वारा ट्रेनिंग कर रहे अभ्यर्थियों से केवल बायोमेट्रिक मशीन में अंगूठा ही लगवाया गया और सीखने के नाम पर उन्हें केवल भाषण वो भी पूरी ट्रेनिंग में केवल शुरू और आखिरी वाले दिन देकर घर भेज दिया गया। आपको बता दें कि इस ट्रेनिंग के  एग्जाम में भी घोटाले करते हुए कई छात्र जो ट्रेनिंग का हिस्सा होते थे उनकी अनुपस्थिति में दूसरे छात्रों को बैठा कर खानापूर्ति की गई। ट्रेनिंग ले रहे अभ्यर्थियों को अपने विषय की सही से जानकारी तक नहीं होती थी। ऐसे अभ्यर्थी काम कैसे करेंगे और उनको कौन सी कंपनी प्लेसमेंट देगी। अभ्यर्थियों से प्रलोभन देकर ट्रेनिंग के लिए जरूरी दस्तावेज ही लिए गए और उसके बाद उनकी कोई पूछ परख तक नहीं की गई।

स्कॉलरशिप तो ट्रेनिंग के समान का झांसा देकर फॉर्म भरवाकर अंत में जिम्मेदार अधिकारी काट लेते थे कन्नी

जब हमारे द्वारा इस मामले की जांच पड़ताल की गई तो पता चला कि छात्रों को कई प्रकार के प्रलोभन देकर ट्रेनिंग के लिए तैयार किया जाता था और बाद में ट्रेनिंग के बाद जिम्मेदार अधिकारी कन्नी काट लेते थे और ट्रेनिंग प्राप्त होने के बाद भी छात्र भटकने को मजबूर होते थे। यह पूरा माजरा केवल ट्रेनिंग के लिए आए फंड को घोटाला करने के लिए किया जाता था क्योंकि अलग अलग ट्रेनिंग में छात्रों के ट्रेनिंग के लिए कई तरह से अलग अलग पेमेंट आते थे लेकिन ट्रेनिंग में घोटाला करा के या यूं कहें ट्रेनिंग केवल कागजों में दर्शा के ट्रेनिंग की सारी राशि को डकार लिया जाता था। इस खेल में लाइवलीहुड कॉलेज के चपरासी से लेकर उच्च अधिकारी तक और CSSDA के बड़े अधिकारियों की मिलीभगत होती थी और इस घोटाले में सभी का परसेंट बंधा हुआ रहता था।


ट्रेनिंग के बिल में घोटाला करने के लिए बिना सामान खरीदे फर्जी बिल का सहारा लेकर केवल बिल पास किया जाता था और उस बिल का एक हिस्सा बिल देने वाले को और बाकी का सारा लाइवलीहुड और CSSDA के बड़े अधिकारियों का होता था।

नियम विरुद्ध तरीके से निजी संस्थानों को दिया जाता था ट्रेनिंग का जिम्मा

क्योंकि यह योजना पूर्णतया सरकारी थी और इसमें ट्रेनिंग देने का अधिकार लाइवलीहुड कॉलेज को था लेकिन लाइवलीहुड कॉलेज द्वारा कुछ निजी संस्थाओं को ट्रेनिंग की जिम्मेदारी ट्रेनिंग फीस में से 40 पर्सेंट कमीशन लेकर दे दी जाती थी। इस पूरे ट्रेनिंग में एक सुपर बॉस का दबदबा चलता था जिसके एक आदेश पर लाइवलीहुड के सहायक परियोजना अधिकारी हेरा फेरी किया करते थे जैसे मानो उन्हें किसी भी बड़े अधिकारी का भय ही ना हो। लाइवलीहुड कॉलेज के अधिकारी केवल अपने प्रतिशत पर अड़े रहते थे उनको केवल अपने हिस्से/प्रतिशत या यूं कहे कमिशन से मतलब रहता था। साहब का आदेश मिलते ही बस वो जो ट्रेनिंग शासकीय तौर पर होनी चाहिए होती थी उसे किसी भी संस्था के हवाले से करवा लिया करते थे और उनको इस बात की भी फुर्सत नहीं होती थी कि वो ट्रेनिंग जो उनके निगरानी में होनी चाहिए होती थी उसे दूसरी थर्ड पार्टी संस्था कैसे करवा रही है या नहीं कि जानकारी ले सके। वे तो केवल साहब के आदेश आते ही नियमों को ताक पर रखते हुए ट्रेनिंग किसी और संस्था को विधि विरुद्ध सौंप देते थे और अपना कुर्सी गरम करने में लग जाते थे। कार्यालय के विशेष सूत्रों ने बताया कि उनके डील करने का बहुत सारा वीडियो और कॉल रिकॉर्डिंग उनके ऐसे लोगों के पास हैं जो साहब और सहायक परियोजना अधिकारी के झांसे में आकर यह ट्रेनिंग करवा चुके हैं।

साहब और सहायक परियोजना अधिकारी संथाओं के लोगों को देते थे जुबान की कीमत का झांसा

यहां ठगी केवल हितग्राहियों से नहीं होती थी यहां जिस संस्था को विधि विरुद्ध काम सौंपा जाता था उनके साथ भी धोखाधड़ी की जाती थी,उन्हें बोला जाता थी अगर आपको हमारी बातों पर भरोसा नहीं है तो आप मेरा वीडियो बना लीजिए रिकॉर्डिंग कर लीजिए आपको जल्दी ही वर्क ऑर्डर मिल जाएगा ऐसा करते करते पूरी ट्रेनिंग खत्म हो जाती थी लेकिन वर्क ऑर्डर नहीं मिलता था और तो और संस्था को एक पैसा भी नहीं दिया जाता था पैसों की बात पर बोला जाता था कि आपको वर्क ऑर्डर मिलेगा उसके बाद आप जब बिल लगाएंगे तो आपका सारा पेमेंट आपको मिल जाएगा,लेकिन बिल का पैसा तो दूर की बात है एक पैसा भी संस्था को नहीं मिलता था केवल साहब और सहायक परियोजना अधिकारी मिलकर पैसा डकार जाते थे। लेकिन साहब और सहायक परियोजना अधिकारी इस बात को भूल गए कि उनके कहे अनुसार कई लोगों को जब अपने निवेश किए गए पैसे फंसने का डर था तो उन्होंने कई वीडियो और कॉल रिकॉर्डिंग कर रखें थे। इस पूरे मामले पर जांच कर जिम्मेदार अधिकारियों पर कारवाही होनी चाहिए क्योंकि इन लोगों के द्वारा हितग्राही और संस्था के लोग आज ठगी का शिकार हो चुके हैं। हम जल्द ही इससे संबंधित साक्ष्यों को आप लोगों तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे जिससे भ्रष्ट और घूसखोर अधिकारियों की पोल खुल सके।

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